शबनमी-रुत को सदा दे साया-ए-नम को पुकार धूप में तेज़ी बहुत है सर्द मौसम को पुकार छीन लेती है क़रार-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ मौज-ए-नशात रख हुजूम-ए-ग़म से रिश्ता हर नए ग़म को पुकार कुछ न मिल पाएगा तुझ को जुज़ सदा-ए-बाज़गश्त हर गली में तू सदा दे सारे आलम को पुकार कुछ हमारा हाल भी सुन मुंतज़िर सदियों से हैं ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी इक बार तू हम को पुकार