सुकूँ की छाँव में जलने का माजरा है अजीब हमारे दिल का भी लोगो मोआ'मला है अजीब बता ऐ पैकर-ए-लम्हात कुछ हुआ है अजीब न रौशनी न अंधेरा तिरी क़बा है अजीब तिरी ज़मीं तो है बे-मेहवरी की सम्त रवाँ तिरा सफ़र हो सलामत कि रास्ता है अजीब कहीं भी जुम्बिश-ए-यक-लम्हा तक का नाम नहीं दयार-ए-दिल का तो इस बार ज़लज़ला है अजीब कोई तो दे मिरी आँखों को नींद की सौग़ात यहाँ तो जागती रातों का सिलसिला है अजीब क़रार-ए-क़ल्ब भी ढूँडें तो किस लिए ढूँडें क़रार-ए-क़ल्ब से आगे का रास्ता है अजीब नजात अब तिरी मुमकिन नहीं कहीं भी 'शुऐब' हुजूम-ए-दर्द का अब के मुहासरा है अजीब