शफ़क़ सितारे धनक कहकशाँ बनाते हुए वो इस ज़मीं पे मिला आसमाँ बनाते हुए भटक न जाएँ मिरे बाद आने वाले लोग मैं चल रहा हूँ ज़मीं पर निशाँ बनाते हुए चलो अब उन की भी बस्ती में फूल बाँट आएँ जो थक चुके हैं ये तीर-ओ-कमाँ बनाते हुए मिरे वजूद की रुस्वाइयाँ तुम्हारी क़सम है दिल में ख़ौफ़ फिर इक राज़-दाँ बनाते हुए जलाए हाथ तहफ़्फ़ुज़ में वर्ना आँधी से चराग़ बुझ गया होता धुआँ बनाते हुए पड़ा हुआ है वो तारीकियों के मलबे में ख़याल-ओ-ख़्वाब में इक कहकशाँ बनाते हुए यही हो अज्र मिरे कार-ए-ख़ैर का शायद अकेले रह गया ख़ुद कारवाँ बनाते हुए ज़मीं पे बैठ गया थक के दो-घड़ी 'ख़ालिद' अमीर लोगों की वो कुर्सियाँ बनाते हैं