फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ चाहता हूँ एक दिल में दो मकाँ पैदा करूँ तब-ए-आली से अगर औज-ए-बयाँ पैदा करूँ मैं ज़मीन-ए-शेर में भी आसमाँ पैदा करूँ हूँ मैं वो दिल-सोख़्ता तासीर-ए-आह-ए-गर्म से गुलशन-ए-जन्नत में भी दौर-ए-ख़िज़ाँ पैदा करूँ पाँव कहते हैं तिरे कूचे में आ कर ज़ोफ़ से तू गिरा दे और मैं ख़्वाब-ए-गिराँ पैदा करूँ अब भी तुम आओ तो मैं आँखों में बहर-ए-यक-नज़र ढूँड कर थोड़ी सी जान-ए-ना-तवाँ पैदा करूँ मैं हूँ ऐ 'तस्लीम' शागिर्द-ए-'नसीम'-ए-देहलवी चाहिए उस्ताद का तर्ज़-ए-बयाँ पैदा करूँ