शहर का शहर जानता है मुझे शहर के शहर से गिला है मुझे मेरा बस एक ही ठिकाना है मैं कहाँ जाऊँगा पता है मुझे रौशनी में कहीं उगल देगा मेरा साया निगल गया है मुझे बन गया हूँ गुनाह की तस्वीर कोई छुप छुप के देखता है मुझे रास्ते भी तो सो गए होंगे अपने बिस्तर पे जागना है मुझे उस की बातें समझ रहा हूँ मैं वो भी लफ़्ज़ों में तौलता है मुझे ये नतीजा है आगही का 'शकील' आज कल इक जुनून सा है मुझे