सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला हम ऐसे खोए कि फिर तेरा आस्ताँ न मिला ग़मों की बज़्म कि तन्हाइयों की महफ़िल थी हमें वो दुश्मन-ए-तमकीं कहाँ कहाँ न मिला अजीब दौर-ए-सितम है कि दिल को मुद्दत से नवेद-ए-ग़म न मिली मुज़्दा-ए-ज़ियाँ न मिला किसे है याद कि सई-ओ-तलब की राहों में कहाँ मिला हमें तेरा निशाँ कहाँ न मिला उधर वफ़ा का गिला है कि दिल लहू न हुआ उधर सितम को शिकायत कि क़द्र-दाँ न मिला लबों को नुत्क़ का ए'जाज़ तो मिला 'ताबाँ' मगर सुकूत का पैराया-ए-बयाँ न मिला