शहर का शहर लुटेरा है नज़र में रखिए अब मता-ए-ग़म-ए-जानाँ भी न घर में रखिए क्या ख़बर कौन से रस्ते में वो रहज़न मिल जाए अपना साया भी न अब साथ सफ़र में रखिए अब कहीं से न ख़रीदार-ए-वफ़ा आएगा अब कोई जिंस न बाज़ार-ए-हुनर में रखिए सर-ए-दीवार वो ख़ुर्शीद-ब-कफ़ आया है अब चराग़-ए-दिल-ओ-जाँ राहगुज़र में रखिए शो'ला-ए-दर्द लिए दिल-ज़दगाँ निकले हैं अब कोई आग नई बर्क़-ओ-शरर में रखिए चश्मा-ए-चशम पे 'मोहसिन' वो नहाने आया अब सदा उस को इसी दीदा-ए-तर में रखिए