शहर के शहर बसाते हुए मर जाते हैं कार-ए-दुनिया को चलाते हुए मर जाते हैं लोग बिछ्ड़ें तो बसा लेते हैं दुनिया फिर से हम तो बस हाथ छुड़ाते हुए मर जाते हैं जब से तू राह की दीवार समझता है हमें हम तिरी राह में आते हुए मर जाते हैं चंद चेहरों के लिए दीद बचा रक्खी थी अब तो हम पलकें बिछाते हुए मर जाते हैं जो तिरे नाम से अशआ'र कहे थे हम ने हम वो अशआ'र सुनाते हुए मर जाते हैं वो समझते हैं कि हम आँखों में गुम हैं 'बुशरा' उन से हम नज़रें मिलाते हुए मर जाते हैं