शहर की गलियाँ घूम रही हैं मेरे क़दम के साथ ऐसे सफ़र में इतनी थकन में कैसे कटेगी रात ख़्वाब में जैसे घर से निकल कर घूम रहा हो कोई रात में अक्सर यूँ भी फिरी है तेरे लिए इक ज़ात चंद बगूले ख़ुश्क ज़मीन पर और हवाएँ तेज़ इस सहरा में कैसी बहारें कैसी भरी बरसात शोर मचाएँ बस्ती बस्ती सोच रहे थे आप देखा किन किन वीरानों में ले के गए हालात