शहर लगता है बयाबान मुझे कहीं मिलता नहीं इंसान मुझे मैं तिरा नक़्श-ए-क़दम हूँ ऐ दोस्त अपने अंदाज़ से पहचान मुझे मैं तुझे जान समझ बैठा हूँ अपने साए की तरह जान मुझे तू कहाँ है कि तिरे पर्दे में लिए फिरता है तिरा ध्यान मुझे तेरी ख़ुश्बू को सबा लाई थी कर गई और परेशान मुझे सर-ओ-सामान-ए-दो-आलम हूँ मैं क्यूँ कहो बे-सर-ओ-सामान मुझे मेरी हस्ती तिरा अफ़्साना थी मौत ने दे दिया उन्वान मुझे दिल की धड़कन पे गुमाँ होता है ढूँढता है कोई हर-आन मुझे मैं भी आईना हूँ तेरा लेकिन तू ने देखा कभी हैरान मुझे उन की निस्बत का करिश्मा है 'ज़फ़र' कहते हैं यूसुफ़-ए-कनआ'न मुझे