शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त क्यूँ न हो हर कूचा ओ बाज़ार मस्त हो गई उस का क़द ओ रुख़्सार देख सर्व क़ुमरी बुलबुल ओ गुलज़ार मस्त ज़ाहिदो उठ जाओ मज्लिस से कि आज बे-तरह आता है वो मय-ख़्वार मस्त जिस के घर जाता है वो दारू पिए हो है उस घर के दर-ओ-दीवार मस्त सर को क़दमों पर धर उस के लोटिए रात को आए अगर वो यार मस्त मय-कशो 'हातिम' को मतवाला कहो ऐसा हम देखा नहीं होशियार मस्त