शहर-ब-शहर कर सफ़र ज़ाद-ए-सफ़र लिए बग़ैर कोई असर किए बग़ैर कोई असर लिए बग़ैर कोह-ओ-कमर में हम-सफ़ीर कुछ नहीं अब ब-जुज़ हवा देखियो पलटियो न आज शहर से पर लिए बग़ैर वक़्त के मा'रके में थीं मुझ को रिआयतें हवस मैं सर-ए-मा'रका गया अपनी सिपर लिए बग़ैर कुछ भी हो क़त्ल-गाह में हुस्न-ए-बदन का है ज़रर हम न कहीं से आएँगे दोश पे सर लिए बग़ैर करया-ए-गिरया में मिरा गिर्या हुनर-वराना है याँ से कहीं टलूँगा मैं दाद-ए-हुनर लिए बग़ैर उस के भी कुछ गिले हैं दिल उन का हिसाब तुम रखो दीद ने उस में की बसर उस की ख़बर लिए बग़ैर उस का सुख़न भी जा से है और वो ये कि 'जौन' तुम शोहरा-ए-शहर हो तो क्या शहर में घर लिए बग़ैर