शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया सर-बरहना मिरा ताजदार आ गया सुब्ह-ए-ख़ंदाँ लिए रू-ए-ताबाँ लिए शाम-ए-ग़ुर्बत तिरा ग़म-गुसार आ गया सब्र अर्ज़ां हुआ जब्र लर्ज़ां हुआ साहब-ए-शान-ए-सद-इख़्तियार आ गया नाला-कारो उठो सोगवारो उठो बे-क़रारो कोई बे-क़रार आ गया काएनात अपनी है अब हयात अपनी है ग़मकशो ग़म-ज़दो ग़म-गुसार आ गया ताज़ा अब ग़म न कर ख़म को अब ख़म न कर साक़िया हासिल-ए-इंतिज़ार आ गया जाम छलका दिया शो'ला भड़का दिया याद आख़िर ज़ुलेख़ा का प्यार आ गया रात खुलने लगी चाँदनी धुल गई माह-वश मह-शिकन मह-शिआर आ गया ज़ख़्म-ए-पिन्हाँ महक ताइर-ए-जाँ लहक गुल-बदन गुल-जबीं गुल-ए-एज़ार आ गया बात क्यूँ रोक ली आँख क्यूँ नम हुई मुझ को देखो मुझे ए'तिबार आ गया आप सोचें 'नज़र' किस लिए मस्त है आप के साथ अब्र-ए-बहार आ गया