शहर-ए-जाँ पर जो तिरी याद का लश्कर टूटा एक हमले में हिसार-ए-दिल-ए-ख़ुद-सर टूटा जैसे इक बर्क़ सी लहराई पस-ए-पर्दा-ए-अब्र जैसे इक चाँद सर-ए-शाख़-ए-सनोबर टूटा आ गया ता ब गिरेबान-ए-शफ़क़ दस्त-ए-सहाब बाम-ए-अफ़्लाक पे नाहीद का महवर टूटा मेरे साग़र में उतर आया किसी शाम का अक्स मेरी आँखों में किसी हुस्न का नश्तर टूटा दिल की गहराई में फिर जाग उठा शो'ला-ए-दर्द मुंजमिद था जो मिरे ग़म का समुंदर टूटा दश्त-ए-अय्याम से लौटी किसी एहसास की गूँज मा'बद-ए-जाँ में किसी वहम का पैकर टूटा फिर पुर-असरार यका यक हुई ख़ामोशी-ए-शब फिर कोई जाम किसी हाथ से गिर कर टूटा कासनी धूप के आँसू मिरी आँखों से बहे जैसे इक महर-ए-दरख़्शाँ मिरे अंदर टूटा ग़ुल मचाते हुए रंगों के परिंदे निकले संग-ए-हैरत से जब आईना-ए-मंज़र टूटा गुम्बद-ए-गोश में गूँजी फिर इक आवाज़-ए-शिकस्त क्या ख़बर ये मिरा दिल टूटा कि साग़र टूटा