शाहकार-ए-हुस्न-ए-फ़ितरत साज़िशों में बट गया आईना टूटा तो चेहरा आइनों में बट गया रात मक़्तल में ख़ुदा जाने वो किस का क़त्ल था जो तबर्रुक बन के सारे क़ातिलों में बट गया मैं किताब-ए-ज़िंदगी का एक लफ़्ज़-ए-मुस्तक़िल वक़्त ने तशरीह की तो हाशियों में बट गया लाख अब दुनिया मनाए उस का जश्न-ए-इर्तिकाज़ वो तो रेज़ा रेज़ा सारे दोस्तों में बट गया लम्हा लम्हा जोड़ कर औरों को सदियाँ बख़्श दीं ख़ुद सदी का क़त्ल कर के साअ'तों में बट गया उस के बारे में ये अंदाज़ा भी लग सकता नहीं उस ने कितने ग़म सहे कितने दुखों में बट गया चंद क़तरे उस की आँखों में मिले 'आज़र' मगर वो समुंदर बन के सब प्यासे घरों में बट गया