शहर-अदब की जिस घड़ी जागीर बन जाएँगे हम कारवान-ए-दिल के फिर तो 'मीर' बन जाएँगे हम मेरी फ़ुर्क़त में कभी जो तुम ने देखे थे जनाब उन हसीं ख़्वाबों की इक ता'बीर बन जाएँगे हम तब्सिरा जब भी करेगा कोई मुल्क-ओ-क़ौम पर तो क़लम क़िर्तास और तहरीर बन जाएँगे हम जाग जाएगा शुऊ'र-ए-आगही जब तुम में तो ख़ित्ता-ए-हस्ती की इक तनवीर बन जाएँगे हम अज़्म ले के दिल में उट्ठेंगे सलाहुद्दीन सा और उम्र का नारा-ए-तकबीर बन जाएँगे हम जाबिरों के ज़ुल्म को 'साबिर' मिटाने के लिए हैदर-ए-कर्रार की शमशीर बन जाएँगे हम