शहर-ए-तमन्ना सोया हुआ था दर्द का सहरा जाग रहा था कैसे बताऊँ डर कैसा था ख़ून बदन का जमने लगा था दिल में जो आई सब ने कहा था आँखों से किस ने देखा था लोगों की पहचान थी मुश्किल चेहरे सा गर्दन पे क्या था दुनिया मेरे पीछे पड़ी थी मैं दुनिया से भाग रहा था लोग तमाशा देख रहे थे दरिया में कुछ डूब रहा था ख़ुद से भी बेज़ार है 'अख़्तर' कल तक जो हँसता रहता था