वफ़ूर-ए-हौसला-ए-अरज़-ए-मुद्दआ' न रहा मिला जो उस से तो बाक़ी कोई गिला न रहा रगों से दर्द का रिश्ता भी ख़ाम ही निकला किसी की चश्म-ए-इनायत का सिलसिला न रहा निकाल फेंक दिया दिल से सब उसूलों को नज़र के सामने जब कोई रास्ता न रहा मिरे लहू से ही रौशन चराग़ थी हस्ती मिरे ही घर में अगरचे कोई दिया न रहा अजीब है कि हुआ रू-सियह रक़ीब मिरा अजीब-तर है कि वो शोख़ बा-वफ़ा न रहा तलब में उस की फ़रोज़ाँ किया था दिल का दिया हवा चली तो बहुत देर तक जला न रहा