दिला न अपनी मोहब्बत का ए'तिबार मुझे ख़ुदा के वास्ते रहने दे सोगवार मुझे नहीं है मंज़र-ए-हस्ती पे ए'तिबार मुझे मशिय्यतों ने दिया है दिल-ए-फ़िगार मुझे हर इक मक़ाम पे शाकी है आदमी की नज़र न रास आया तजस्सुस का कारोबार मुझे फ़िराक़-ए-दोस्त का ग़म हो कि हो नशात-ए-हयात नहीं है अब किसी हालत पे ए'तिबार मुझे निगाह-ए-शौक़ को क्यों ज़हमत-ए-तकल्लुम दूँ ख़िज़ाँ का रंग है पैराहन-ए-बहार मुझे ख़ुलूस-ए-इश्क़ की तौहीन है नवा-ए-अलम फ़ुग़ान-ए-शौक़ न कर और शर्मसार मुझे जुनून-ए-इश्क़ की नैरंगियाँ मआ'ज़-अल्लाह किया बहार में आज़ुर्दा-ए-बहार मुझे