शाख़ तिनके को लिखा शोले को झोंका लिख दिया मैं ग़ज़ल कहने लगा लेकिन क़सीदा लिख दिया पढ़ती रहती हैं ख़लाओं को मिरी बीनाइयाँ तू ने इन औराक़ पर मेरे ख़ुदा क्या लिख दिया किस की साँसें मेरे हाथों की लकीरें बन गईं किस ने मेरे आइने में अपना चेहरा लिख दिया किस की ख़ुशबू से महक उट्ठीं मिरी तन्हाइयाँ किस ने वीराने में क़िस्मत का तमाशा लिख दिया मैं जहाँ डूबा वहाँ बुनियाद-ए-साहिल पड़ गई आख़िरी साँसों ने पानी पर जज़ीरा लिख दिया ज़िंदगी को उड़ते लम्हों के कफ़न में ढाँप कर संग-ए-मुस्तक़बिल पे मैं ने अपना कतबा लिख दिया यूँ मुकम्मल की है 'नजमी' मैं ने अपनी दास्ताँ जिस जगह भी रब्त टूटा नाम उस का लिख दिया