शाख़-ए-अरमाँ की वही बे-सब्री आज भी है मोजिब-ए-गिरिया-ए-शाम-ओ-सहरी आज भी है वही आईना-ब-कफ़ दीदा-वरी आज भी है उन में पहले की तरह ख़ुद-निगरी आज भी है संग-बारों के लिए दर्द-सरी आज भी है कल गराँ थी जो मिरी शीशा-गरी आज भी है आज भी मोरिद-ए-इल्ज़ाम है मासूम निगाह जुर्म इल्ज़ाम से कल भी था बरी आज भी है बात दुश्वारी-ए-मंज़िल की नई बात नहीं राह पहले भी थी काँटों से भरी आज भी है