शाख़-ए-उम्मीद जल गई होगी दिल की हालत सँभल गई होगी 'जौन' उस आन तक ब-ख़ैर हूँ मैं ज़िंदगी दाव चल गई होगी इक जहन्नुम है मेरा सीना भी आरज़ू कब की गल गई होगी सोज़िश-ए-परतव-ए-निगाह न पूछ मर्दुमक तो पिघल गई होगी हम ने देखे थे ख़्वाब शो'लों के नींद आँखों में जल गई होगी उस ने मायूस कर दिया होगा फाँस दिल से निकल गई होगी अब तो दिल ही बदल गया अब तो सारी दुनिया बदल गई होगी दिल गली में रक़ीब दिल का जुलूस वाँ तो तलवार चल गई होगी घर से जिस रोज़ मैं चला हूँगा दिल की दिल्ली मचल गई होगी धूप या'नी कि ज़र्द ज़र्द इक धूप लाल क़िलए' से ढल गई होगी हिज्र-ए-हिद्दत में याद की ख़ुश्बू एक पंखा सा झल गई होगी आई थी मौज-ए-सब्ज़-ए-बाद-ए-शिमाल याद की शाख़ फल गई होगी वो दम-ए-सुब्ह ग़ुस्ल-ख़ाने में मेरे पहलू से शल गई होगी शाम-ए-सुब्ह-ए-फ़िराक़ दाइम है अब तबीअ'त बहल गई होगी