शम्अ भी इस सफ़ा से जलती है तेरे रुख़ पर निगह फिसलती है ख़ाक उड़ाती है ऐ सबा मेरी बे-अदब किस तरह से चलती है वो न आया तो जान जाएँगे कब तबीअत मिरी बहलती है दिल निकलता है उस के गेसू से नागनी देखो मन उगलती है निगह-ए-गर्म यार देखे है कब किसी से ये आँख जलती है इक परी-रू पे 'बर्क़' मरता हूँ जान उस पर मिरी निकलती है