सोचों में लहू उछालते हैं हम अपनी तहों में झाँकते हैं दुनिया की हज़ार नेमतों में हम एक तुझी को जानते हैं आँखों से दुखों के रंग आख़िर सारस की उड़ान उड़ गए हैं सावन की तरह हमें भिगो कर बादल की तरह गुज़र गए हैं यूँ भी है कि प्यार के नशे में कुछ सोच के लोग रो पड़े हैं वो दुख तो ख़ुशी के बाब में थे ये दुख जो तुलू हो रहे हैं जो कुछ भी है दिल के आइने में सब तेरी नज़र के ज़ाविए हैं बहते हुए दो बदन समुंदर होंटों के किनारे आ मिले हैं कुछ भी तो नहीं है पास 'ख़ावर' बस एक अना है रत-जगे हैं