शाम-ए-ग़म बीमार के दिल पर वो बन आई कि बस हर तरफ़ तारीकियाँ और ऐसी तन्हाई कि बस दिल की बर्बादी का अफ़्साना अभी छेड़ा ही था अंजुमन में हर तरफ़ से इक सदा आई कि बस उन की आँखों में जो अश्क आए तो यूँ आए कि उफ़ उन के होंटों पर हँसी आई तो यूँ आई कि बस उम्र-भर के वास्ते चुप हो गया बीमार-ए-ग़म आप ने की भी तो की ऐसी मसीहाई कि बस क्या कहें 'राही' कि अपनों से हमें क्या क्या मिला वो नवाज़िश वो करम वो इज़्ज़त-अफ़ज़ाई कि बस