शामिल-ए-कारवाँ न था राहगुज़ार था अजब राह में भी ग़ुबार था सर पे बार था अजब पेश-ए-नज़र खड़ी रही मंज़िल-ए-जुस्तुजू मगर हाथ में भी सकत न थी पाँव में ख़ार था अजब हार जो दूसरों के थे साँप की मिस्ल तो न थे तुम ने मिरे गले में जो डाला वो हार था अजब मेरे लबों पे दहर का शिकवा जो था फ़ुज़ूल था चूँकि दरून-ए-दिल मुझे दैर से प्यार था अजब तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ सी दोनों की उम्र-ए-दोस्ती 'जामिद'-ए-ज़िंदा-तब-ए-रसा उस का भी यार था अजब