शराब आए तो कैफ़-ओ-असर की बात करो पियो तो बज़्म में फ़िक्र-ओ-नज़र की बात करो फ़साना-ए-ख़म-ए-गेसू में कैफ़ कुछ भी नहीं निज़ाम-ए-आलम-ए-ज़ेर-ओ-ज़बर की बात करो चमन में दाम बिछाता है वक़्त का सय्याद गुलों से हौसला-ए-बाल-ओ-पर की बात करो क़बा-ए-ज़ोहद की पाकीज़गी तो देख चुके शराब-ख़ाने में दामान-ए-तर की बात करो कहानियाँ शब-ए-हिज्राँ की हो चुकी हैं तमाम सहर तुलूअ' हुई है सहर की बात करो चमन चमन में उधर हो रही है हद-बंदी खुली फ़ज़ाएँ जिधर हैं उधर की बात करो गुलों का ज़िक्र बहारों में कर चुके 'अख़्तर' अब आओ होश में बर्क़-ओ-शरर की बात करो