यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था अब वो चकनाचूर पड़ा है जिस शीशे में बाल न था इंसाँ आ कर नई डगर पर खो बैठा है होश-ओ-हवास पहले भी बेहोश था लेकिन ऐसा भी बद-हाल न था गुलशन गुलशन वीरानी है जंगल जंगल सन्नाटा हाए वो दिन जब हर मंज़िल में शोरिश-ए-ग़म का काल न था क्यूँ रे दिवाने शहर यही है इक इक पल भारी है जहाँ अपने वीराने में ऐ दिल जी का ये जंजाल न था हम जो लुटे उस शहर में जा कर दुख लोगों को क्यूँ पहुँचा अपनी नज़र थी अपना दिल था कोई पराया माल न था तेरी ख़ाक पे रौशन रौशन 'अख़्तर' जैसे सितारे थे तुझ सा ऐ महरान की वादी कोई बुलंद-इक़बाल न था