शराब में है न रंगीनी-ए-बहार में है वो कैफ़-ए-तौबा-शिकन जो शबाब-ए-यार में है नसीहतें तिरी नासेह बजा सही लेकिन मैं दिल के बस में हूँ दिल उन के इख़्तियार में है अदा बताती है कलियों के मुस्कुराने की कि कोई शोख़-सरा पर्दा-ए-बहार में है नज़र भी इश्क़ के बंदे उठा नहीं सकते कि दिल का भेद निगाहों के इख़्तियार में है शिकस्त-ए-रंग का मंज़र भी आ के देख कभी मिरी ख़िज़ाँ में है सब जो तिरी बहार में है