शराब-ओ-शीशा-ओ-साग़र सुबू-ओ-पैमाना फ़दा-ए-नीम-निगाही तमाम मय-ख़ाना क़दम क़दम पे मशिय्यत ने पाँव चूमे हैं ये किस मक़ाम से गुज़रा है तेरा दीवाना कभी कभी तो हरम क्या है बुत-कदा क्या है मैं तेरे दर से भी गुज़रा हूँ बे-नियाज़ाना उसी के दम से है रौशन हरीम-ए-का'बा-ए-दिल ख़ुदा करे कि न गुल हो चराग़-ए-बुत-ख़ाना जमाल-ए-यार झलकता है 'आरज़ू' जिस में मिरी ग़ज़ल है वो रंगीन आइना-ख़ाना