शरीक-ए-हाल-ए-दिल-ए-बे-क़रार आज भी है किसी की याद मिरी ग़म-गुसार आज भी है मुझे तो कल भी न था उन पर इख़्तियार कोई और उन को मुझ पे वही इख़्तियार आज भी है तिरी तरफ़ से ज़ुहूर-ए-करम नहीं न सही तिरे करम का मुझे ए'तिबार आज भी है वो रस्म-ए-शौक़ कहाँ अब मगर ये आलम है कि जैसे दिल को तिरा इंतिज़ार आज भी है किसी का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो अब कहाँ लेकिन निशान-ए-सज्दा सर-ए-रहगुज़ार आज भी है वो उन का ग़म कि निगाहें बदल चुका 'अख़्तर' कमाल-ए-शौक़ का परवरदिगार आज भी है