शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़ हाथ में लबरेज़ ले कर जाम-ए-इश्क़ आप हूँ ज़ौक़-ए-असीरी से ख़राब कोई ले जाए मुझे ता दाम-ए-इश्क़ इश्तियाक़-ए-सज्दा से बेताब हूँ ऐ हरीम-ए-काबा-ए-इस्लाम-ए-इश्क़ क़ैस ओ वामिक़ से कहाँ अब अहल-ए-दिल था इन्हीं लोगों से रौशन नाम-ए-इश्क़ नाश पर फ़रहाद के शीरीं गई वो सितम-परवर्दा-ए-आलाम-ए-इश्क़ और यूँ करने लगी रो कर ख़िताब ऐ वफ़ा की जान ऐ नाकाम-ए-इश्क़ तुझ से रौनक़-आश्ना है सुब्ह-ए-शौक़ तुझ से ज़ीनत-आफ़रीं है शाम-ए-इश्क़ जान दे कर तू तो छूटा रंज से रह गई मैं ही बला आशाम-ए-इश्क़ तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ था मौत पर होगा मिरे अंजाम-ए-इश्क़ 'वहशत'-ए-वहशी कि था सब से अलग हो गया क्या बे-तकल्लुफ़ राम-ए-इश्क़