शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने इस जिंस को बाज़ार में पूछा न किसी ने सद शुक्र किसी का नहीं मोहताज-ए-करम में एहसान किया है तिरी बेदाद-गरी ने मोहताज थी आईने की तस्वीर सी सूरत तस्वीर बनाया मुझे महफ़िल में किसी ने गुल हँसते हैं ग़ुंचे भी हैं लबरेज़-ए-तबस्सुम क्या उन से कहा जा के नसीम-ए-सहरी ने मायूस न कर दे कहीं उन की निगह-ए-गर्म उम्मीद दिलाई है मुझे सादा-दिली ने मेहनत ही पे मौक़ूफ़ है आसाइश-ए-गेती खोई मिरी राहत मिरी राहत-तलबी ने 'वहशत' मैं निगाहों के तजस्सुस से हूँ आज़ाद एहसान किया मुझ पे मिरी बे-हुनरी ने