शौक़ का तक़ाज़ा है शरह-ए-आरज़ू कीजे दिल से अहद-ए-ख़ामोशी कैसे गुफ़्तुगू कीजे दिल हो या गरेबाँ हो रोज़ चाक होते हैं क्या जुनूँ के मौसम में कोशिश-ए-रफ़ू कीजे आशिक़ी-ओ-ख़ुद्दारी बंदगी-ओ-ख़ुद-बीनी आरज़ू की राहों में ख़ून-ए-आरज़ू कीजे दाद सई-ए-पैहम की कुछ तो दीजिए या'नी ताज़ा-तर शिकस्तों से दिल को सुर्ख़-रू कीजे पा-ए-शौक़ में कब तक रास्तों की ज़ंजीरें सूरत-ए-सबा चलिए सैर चार-सू कीजे है ख़ुलूस का मस्लक दुश्मन-ए-असर आख़िर जो न हो मुक़द्दर में उस की जुस्तुजू कीजे बज़्म-ए-जाम-ओ-मीना में दाद-ए-तिश्नगी दीजे मौसम-ए-बहाराँ में हसरत-ए-नुमू कीजे क्या अजब कि बर आए दिल की आरज़ू 'ताबाँ' सैर कू-ए-क़ातिल की आप भी कभू कीजे