वो चर्चा जी के झंझट का हुआ है कि दिल का पासबाँ खटका हुआ है वो मिसरा था कि इक गुल-रंग चेहरा अभी तक ज़ेहन में अटका हुआ है हम उन आँखों के ज़ख़माए हुए हैं ये हाथ उस हाथ का झटका हुआ है यक़ीनी है अब इस दिल की तबाही ये क़र्या राह से भटका हुआ है गिला इस का करें किस दिल से 'ख़ालिद' ये दिल कब एक चौखट का हुआ है