शौक़ की क्या है अदा देख ले परवाने में जिस को ताख़ीर गवारा नहीं मिट जाने में रुख़ पे वहशत नमी आँखों में लबों पर आहें किस के ग़म से मची हलचल है ये दीवाने में वो नज़र आएँ तो फिर कौन किसी को देखे इम्तिहाँ तो है वफ़ा का न नज़र आने में वजह-ए-तस्कीं है अगर कुछ तो है ख़ुशनूदी तेरी क्या कशिश अहल-ए-मोहब्बत को जज़ा पाने में उन के क़ुर्बां कि हमें राह दिखा दी घर की क्या हलाकत के सिवा और था वीराने में क़ल्ब-ओ-जाँ फ़िक्र-ए-दो-आलम से रिहाई पा लें भर दे साक़ी मय-ए-वहदत मिरे पैमाने में साथ ईमान के पा जाएँ 'सलीम' इस से नजात मुतमइन कौन है दुनिया के बला-ख़ाने में