शौक़ को बे-अदब किया इश्क़ को हौसला दिया उज़्र-ए-निगाह-ए-दोस्त ने जुर्म-ए-नज़र सिखा दिया आह वो बद-नसीब आह नाला-ए-अंदलीब-ए-आह मेरा फ़साना-ए-अलम जैसे मुझे सुना दिया टूट सका न पस्ती-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का सिलसिला दाम न क़फ़स को हम ने ख़ुद दाम-ओ-क़फ़स बना दिया मेरे मज़ाक़-ए-दीद की शर्म उसी के हाथ है जिस ने शुआ-ए-हुस्न को हुस्न-ए-नज़र बना दिया नाज़-ओ-नियाज़ आश्ना तग़ाफ़ुल-ए-ए'तिबार हाए किस एहतिमाम से तुम ने मुझे मिटा दिया ख़ूब इलाज कर दिया अपने मरीज़-ए-इश्क़ का दर्द मिटाने आए थे दर्द दिया मिटा दिया हाए वो हुस्न-ओ-इश्क़ जब 'बासित'-ए-बे-क़रार को बर्क़-ए-निगाह-ए-दोस्त ने फूँक दिया जला दिया