शौक़ में हाल से बेहाल हुए जाते हैं हम तिरी राह में पामाल हुए जाते हैं क्या सितम है कि तिरे हिज्र में रफ़्ता-रफ़्ता अब शब-ओ-रोज़ मह-ओ-साल हुए जाते हैं आप की याद ने फिर आ के मुझे छेड़ दिया आज फिर अश्क-ए-वफ़ा लाल हुए जाते हैं कहिए क्या उन के मुक़द्दर को ज़हे बख़्त-ए-रसा तेरे क़दमों में जो पामाल हुए जाते हैं ना-मुरादी में ये अस्बाब-ए-फ़राग़त 'रज़्मी' ज़िंदगी के लिए जंजाल हुए जाते हैं