शौक़ उस का हम ने वस्ल में बेदार कर दिया जीना फिर हम ने अपना ही दुश्वार कर दिया साक़ी ने अपनी कैफ़ियत-ए-ख़ास मुझ को दी मय से नहीं अदाओं से सरशार कर दिया उस की झलक भी पा न सके छिन गया सुकूँ दिल ख़ून मेरा ख़्वाहिश-ए-दीदार कर दिया फ़ारिग़ किया जहाँ की तमन्नाओं से हमें उस का करम है अपना तलबगार कर दिया ख़ूँ आरज़ू को करने में लोहे लगे मगर ये काम हम ने आप का सरकार कर दिया मैं सब समझ गया जो मुझे यार-ए-ग़ार ने उँगली लबों पे रख के ख़बर-दार कर दिया आख़िर मिरी निगाह को पढ़ ही लिया 'सुहैल' उस ने मिरे इरादे को गुलनार कर दिया