कोई रंज है न शिकायतें मुझे अपने होश-ए-परीदा से ये वो शम्अ' थी जो भड़क उठी मिरी आह-ए-नीम-कशीदा से मिरी वहशतों की है इंतिहा कि किसी का हुस्न है रूनुमा कभी मेरे दामन-ए-चाक से कभी मेरी जेब-ए-दरीदा से मैं नुमूद-ए-हुस्न-ए-अलस्त हूँ मैं चराग़-ए-इश्क़-ब-दस्त हूँ ये तजल्लियात-ए-बहार हैं मिरे रंग-ओ-बू-ए-पुरीदा से तिरी याद मेरी अनीस है तिरी याद मेरी जलीस है मिरी ज़िंदगी की नुमूद है तिरी आरज़ू-ए-तपीदा से मैं हरम में महव-ए-नियाज़ था मैं बुतों में सज्दा-तराज़ था कभी इम्तियाज़ न हो सका मिरे ज़ौक़-ए-हिज्र-चशीदा से कोई आरज़ू-ए-दिली 'सिराज' मुराद को न पहुँच सकी कोई फूल बार न पा सका मिरी किश्त-ए-बर्क़-रसीदा से