अमीर से है तअ'ल्लुक़ न ये ग़रीब से है सुकून-ए-क़ल्ब मयस्सर मगर नसीब से है हमारे साथ यही राब्ता ख़ुलूस से था हमारे दोस्त का जो आज-कल रक़ीब से है ये उम्र भर के रक़ीबों से बद-ज़नी मेरी मुशाहिदे की बिना पर है जो क़रीब से है ये ज़िंदगी तो हो मालूम अल्फ़-लैला का इक इक़्तिबास किसी क़िस्सा-ए-अजीब से है सितम ज़माने का फ़िल-वक़्त ज़ेर-ए-बहस नहीं हमारा रू-ए-सुख़न 'शौकत' इक हबीब से है