शौक़-ए-आवारा यूँही ख़ाक-बसर जाएगा चाँद चुपके से किसी घर में उतर जाएगा उस की सोहबत भी है इक ख़्वाब-सरा में रहना वो जो चल देगा तो ये ख़्वाब बिखर जाएगा वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम है प लाज़िम तो नहीं ज़ख़्म जो उस ने दिया है कभी भर जाएगा जिंस-ए-ताज़ा के ख़रीदार पड़े हैं हर-सू कैसे बे-कार मिरा हर्फ़-ए-हुनर जाएगा सोच लीजे कि ये अय्याम गुज़र जाएँगे मतला-ए-फ़िक्र बहर-तौर निखर जाएगा नाख़ुदा कश्ती में सूराख़ किए जाता है हम भी डूबेंगे वहीं आप जिधर जाएगा शौक़-ए-दीदार में उस सर्व-ए-रवाँ के 'शाहिद' मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा