शौक़-ए-दीदार मिरा और भी अफ़ज़ा न करें मेहरबाँ सामने आएँ ज़रा पर्दा न करें वो तो कुछ हो ही गई तुम से मोहब्बत वर्ना हम वो ख़ुद-सर हैं कि अपनी भी तमन्ना न करें फिर न हो जाएँ कहीं दिल में तमन्नाएँ जवाँ ग़ौर से इतना हमें आप तो देखा न करें आप के तर्ज़-ए-इनायत से समझ जाएँगे बरसर-ए-बज़्म हमें आप यूँ रुस्वा न करें हुरमत-ए-इश्क़ सलामत रहे देखें अपने जज़्बा-ए-दिल का किसी हाल में सौदा न करें हम भी बह जाएँ न जज़्बात के धारे में कहीं हुस्न को अपने किसी तौर हुवैदा न करें टूट भी सकते हैं 'ज़रयाब' ये नाज़ुक रिश्ते सामने उस के कभी शिकवा-ए-बेजा न करें