शौक़-ए-दीदार ने क्या क्या न तमाशा देखा जान-ए-मन कैसे बताएँ तुम्हें क्या क्या देखा ज़िंदगी आग है और आग की ख़ातिर हम ने दीप की आँख में जलता हुआ चेहरा देखा मैं ने लम्हों में गुज़ारी हैं हज़ारों सदियाँ वक़्त की धूप में पिघला हुआ दरिया देखा सुब्ह रौशन ने उतारी हैं सितारी आँखें शाख़-ए-शमशाद ने गुलशन का दरीचा देखा राज़-ए-हस्ती में ज़मीं सारी तसव्वुर निकली आसमाँ अपने तख़य्युल का सहीफ़ा देखा दाग़-ए-दामन को छुपाए हुए फिरती है हवा रंग-ओ-आहंग से बदला हुआ शीशा देखा मेरी आँखों में मचलती हुई यादें उस की जाम-ए-उल्फ़त से छलकता हुआ प्याला देखा