जाने क्या दिल पे दम-ब-दम गुज़री इक क़यामत क़दम क़दम गुज़री ग़म को जब जुज़्व-ए-ज़िंदगी जाना ज़िंदगी बे-नियाज़-ए-ग़म गुज़री आरज़ू कूचा-ए-मुहब्बत से ख़ंदा दर-दिल ब-चश्म-ए-नम गुज़री दोस्ती बन गई रवादारी बे-रुख़ी दिल पे बार कम गुज़री उम्र-भर का अज़ाब बन बैठी वो जो दो-चार दिन बहम गुज़री