शौक़-ए-नज़र गुलाब से भी मुतमइन नहीं चश्म-ए-उदास ख़्वाब से भी मुतमइन नहीं किस उम्र में न-जाने क़नाअत पसंद हो ये दिल कि दस्तियाब से भी मुतमइन नहीं अब तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल पे क्या इक्तिफ़ा करे ये आँख माहताब से भी मुतमइन नहीं बस यूँही बे-क़रारी की लत में हूँ मुब्तला वैसे मैं इज़्तिराब से भी मुतमइन नहीं मेरे भले दिनों पे भी वो मो'तरिज़ रहा अब साअ'त-ए-ख़राब से भी मुतमइन नहीं कितनों को राह-ए-रास्त पे लाया 'हसन' मगर दरवेश इस सवाब से भी मुतमइन नहीं