शौक़ से 'इश्क़ के मराहिल तक ख़ून रोते हैं हज़रत-ए-दिल तक क़तरा-क़तरा सफ़ीर-ए-तूफ़ाँ है अब्र-ए-बाराँ से मौज-ए-साहिल तक सर पे साया रहा उमीदों का ख़ाक उड़ती रही मनाज़िल तक तर्ज़-ए-फ़रियाद शेर-ओ-नग़्मा भी स’ई-ए-इज़हार रक़्स-ए-बिस्मिल तक एक दुनिया लुटा के आया हूँ अपनी मंज़िल से तेरी मंज़िल तक क्यों चराग़ाँ 'न'ईम' करते हो कौन आएगा ख़ल्वत-ए-दिल तक