ये बात तुम को जची नहीं है By Ghazal << न जज़्बों में कोई शिद्दत ... शौक़ से 'इश्क़ के मरा... >> ये बात तुम को जची नहीं है ख़ुदा है वाहिद कई नहीं है इसे न छेड़ो अभी तो इस की कहानी आख़िर हुई नहीं है कभी हँसाना कभी रुलाना तिरी शरारत गई नहीं है मिलेगी मंज़िल हमें भी लेकिन हमारे अंदर सई नहीं है जला है घर क़त्ल भी हुआ है कहानी 'अतहर' नई नहीं है Share on: