शेव बढ़ी है साकित आँखें बिखरे बिखरे बाल 'फ़ख़्र' तू कैसे हाल में गुम है अपना आप सँभाल मैं ने मेज़ पे रख डाले हैं ताश के सारे पत्ते अब तो अपने दिल से सारे वहम ख़याल निकाल रेज़ा-रेज़ा टूट गई शख़्सिय्यत की दीवार क़तरा-क़तरा बह उट्ठा है सोचों का सय्याल मुमकिन था ये राज़ न खुलता लेकिन मेरी भूल मेरे कोट के कॉलर पर था उस का लम्बा बाल मुश्किल है अब तेरा मेरा बाहम मिल कर रहना मेरे साँचे में तू ढल या मुझ को फिर से ढाल