उस बूढ़े गदागर से मुझे ख़ौफ़ लगा था अंधा था मगर फिर भी मुझे देख रहा था लोगों ने कहा फूल था सो मान गया मैं पत्थर था जो उस रोज़ मिरे सर पे गिरा था जो भीक मिली बाँट दी औरों में ही मैं ने और शाम को ख़ाली मिरा कश्कोल पड़ा था आता था नज़र साफ़ मुझे सारा तमाशा रूमाल अगरचे मिरी आँखों पे बँधा था जो मेरे तसाहुल के सबब टूट गया है उस टूटे खिलौने से मुझे प्यार बड़ा था पत्थर से कुचल आया था मैं जिस को गली में वो साँप तो फिर मेरे सिरहाने ही खड़ा था सरकार के लोगों ने गिरा डाला है जिस को वो घर भी तो रिश्वत की कमाई से बना था